श्रीलंका के नक्शे-कदम?

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पाकिस्तान में श्रीलंका जैसे हालात बनने का अंदेशा गहरा रहा है। अर्थशास्त्रियों ने वित्तीय आपातकाल लागू करने की सलाह सरकार को दी है। तो अब देखने की बात यह होगी कि मौजूदा सत्ताधारी अपने राजनीतिक हित और देश के हित के बीच किसे तहजीह देते हैं।

पाकिस्तान में अर्थव्यवस्था के श्रीलंका की राह पर जाने के संकेत हैँ। मौजूदा वित्त वर्ष में देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 21.72 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। इसी कारण अब अर्थशास्त्रियों ने देश में वित्तीय आपातकाल लागू करने की सलाह दी है। उनकी राय है कि देश के कॉरपोरेट सेक्टर मिली आठ खरब रुपये की टैक्स रियायत को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। जमीन और अन्य जायदाद पर नए टैक्स लगाए जाने चाहिए। गैर जरूरी रक्षा खर्च घटाने, 1600 सीसी से अधिक क्षमता वाले वाहनों पर इमरजेंसी टैक्स लगाने, बिजली शुल्क दो गुना करने, और आठ सौ वर्ग गज से अधिक के आवासीय जायदाद पर कर लगाने की सलाह भी मौजूदा शाहबाज शरीफ सरकार को दी गई है। मगर सरकार के लिए इस सलाह को मानना आसान नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनके समर्थकों ने पहले ही देश में बड़ा अभियान छेड़ रखा है। उन्होंने मौजूदा सरकार को लूटेरों की ऐसी सरकार बता रखा है, जो अमेरिकी साजिश के तहत बनी है।

साथ ही उनका यह दावा भी है कि इमरान खान ने सत्ता में रहते पेट्रोलियम के दाम पर रोक लगाए रखी। अब अगर सरकार ने उस नीति को पलटा, तो संभव है कि इमरान खान का समर्थन और बढ़े। इसलिए सत्ताधारी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के सामने कुआं और खाई के बीच एक चुनने जैसी स्थिति है। अगर वह अर्थव्यवस्था संभालने के लिए आपातकालीन कदम उठाती है, तो उसका खामियाजा उसे साल भर बाद होने वाले आम चुनाव में उठाना पड़ सकता है। इसलिए पार्टी के एक खेमे की राय है कि यह जोखिम उठाने के बजाय नेशनल और प्रांतीय असेंबलियों को समय से पहले भंग करवा लिया जाए। इससे नए चुनाव की मांग के लिए चलाया जा रहा इमरान खान का भोथरा हो जाएगा। लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर अभी देश चुनाव में फंसाया गया, तो आर्थिक संकट के श्रीलंका जैसी शक्ल ले लेने की संभावना बढ़ जाएगी। अब देखने की बात यह होगी कि मौजूदा सत्ताधारी अपने और देश के हितों के बीच किसे तहजीह देते हैं।

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