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रावण ने युद्ध में जाने से पहले महादेव से क्या कहा | श्रावण मास कथा | शिवरात्रि विशेष

सनातन धर्म में श्रावण (सावन) मास को बहुत ही पवित्र मास माना जाता है और यह मास विशेष रुप से देवों के देव महादेव भगवान शिव की भक्ति को समर्पित है। इस मास में देश के सभी शिवालयों में शिव भक्त अपने भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने के लिए, विशेषकर सोमवार को प्रातःकाल से ही हर-हर महादेव का उद्घोष करते हुए शिवलिंग को जल-दूध अर्पित करने लगते है, क्योंकि भोले भंडारी भगवान शिव अपने भक्तों पर मात्र एक लोटे के जल द्वारा जलाभिषेक किए जाने पर ही प्रसन्न हो जाते है। आदि काल से भगवान शिव अपने भक्तों में कोई भेदभाव नहीं करते है, भक्ति चाहे सुर करें या असुर, वह दोनों पर एक समान कृपा बरसाते है और जब कभी कोई उनकी कृपा का गलत कार्यों में प्रयोग करता है तो उसका विनाश भी करते है।

तुलसी दास के द्वारा लिखी गई राम चरित्र मानस की यह चौपाई शिव जी की महिमा को दर्शाती है “बर दायक प्रनतारति भंजन। कृपासिंधु सेवक मन रंजन॥ इच्छित फल बिनु सिव अवराधें। लहिअ न कोटि जोग जप साधें॥ अर्थात शिवजी वर देने वाले, शरणागतों के दुखों का नाश करने वाले, कृपा के समुद्र से सेवकों के मन को प्रसन्न करने वाले हैं। शिवजी की आराधना किए बिना करोड़ों योग और जप करने पर भी वांछित फल नहीं मिलता।

इस संदर्भ में आपके प्रिय तिलक चैनल ने भगवान शिव की महिमा को दर्शाने के लिए रामायण के कुछ अंशों को संकलित किया है। जैसे कि जब युवा अवस्था में श्री राम अपने भाइयों के साथ शिक्षा लेने के लिए गुरु विश्वामित्र के आश्रम गए थे और वहाँ पर शिव रात्रि पर्व के दिन उनका सभी गुरु भाइयों के साथ भगवान शिव शंकर का किया पाठ और उस पाठ से प्रसन्न होकर शिव जी द्वारा किया गया नृत्य। सीता के स्वयंवर के समय श्री राम के द्वारा शिव जी का धनुष तोड़ा जाना। जैसा कि सर्वविदित है परम ज्ञानी रावण, जो कि असुरी प्रवृत्ति का था, लेकिन उसके जैसा शिव जी का कोई परम भक्त नहीं था, उसने कई शास्त्रों के अतिरिक्त शंकर के प्रिय शिव तांडव स्तोत्र की रचना भी की थी। श्री राम ने लंका पर आक्रमण करने से पूर्व भारतवर्ष के जिस अंतिम तट पर शिव जी का लिंग बना कर आराधना की थी, जिसे आज रामेश्वरम के नाम से जाना था। एक समय जब गरुणराज से श्रीराम और लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त कराया था, तब उन्हें श्री राम का शक्ति पर संदेह हुआ था और उनमें अहंकार भी आ गया था। तब भगवान शिव ने गरुणराज का भ्रम दूर किया और उसके अहंकार को मिटाने के लिए महात्मा काकभुशुण्डी के पास भेज दिया था, यह वही कौआ (काकभुशुण्डी) था, जिसने शंकर के द्वारा पार्वती जी को सुनाई जा रही श्री राम की कथा ‘अध्यात्म रामायण’ को सुन लिया था।

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