उत्तराखंड

गैजेट्स के दौर में बच्चों तक साहित्य ले जाना सामाज की जिम्मेदारी

फूलदेई माह में बाल साहित्य के निमित्त धाद का आयोजन

देहरादून। दस हजार बच्चों की फूलदेई अभियान के अंतर्गत सामाजिक संस्था धाद द्वारा एक विमर्श का आयोजन ऑफिसर ट्रांजिट हॉस्टल मे किया गया I कार्यक्रम मे विश्व की अठारह से अधिक भाषाओं में अनुदित कहानियों के जाने-माने साहित्यकार मनोहर चमोली ‘मनु’ ने कहा कि इक्कीसवीं सदी के बच्चे गैजेट्स के आदी हो चुके हैं। आज के बच्चे हाथ से लिखना और हाथों में किताबों के पन्ने उलटने को नीरस काम समझते हैं। वे लैपटॉप-कंप्यूटर और डिजिटल माध्यमों के अभ्यस्त होते जा रहे हैं। अत्याधुनिक तकनीकियों को अपनाना आज की आवश्यकता है। लेकिन प्रतिस्पर्धात्मक समाज में यदि टिके एवं बने रहना है तो रचनात्मकता और संवेदनशीलता का भाव अत्यंत आवश्यक है। सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार मनोहर चमोली ने बाल साहित्य विधाएँ एवं चुनौतियाँ के संदर्भ में कहा कि हिंदी पट्टी में छप रही बाल पत्रिकाएँ आबादी के लिहाज़ से ऊँट के मुँह में जीरा हैं। शिक्षकों, अभिभावकों और सरकार को भी मिलकर बच्चों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद लेते हुए अपनी बौद्धिकता के विकास का प्रयास नहीं छोड़ना चाहिए।

डॉ० कुसुम रानी नैथानी ने कहा की बाल साहित्य के अंतर्गत वह समस्त साहित्य आता है जिसे बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान पर लिखा गया हो। इसमें रोचक कहानी और कविता प्रमुख हैं। बाल साहित्य बच्चों का मनोरंजन ही नहीं करता अपितु उन्हें जीवन की सच्चाइयों से भी परिचित कराता है ।आज का बच्चा कल का भावी नागरिक है। वे जैसा साहित्य पढ़ेंगे उसी के अनुरूप उनके चरित्र का निर्माण होगा । साहित्यकारों की नजर में बाल साहित्य ऐसा होना चाहिए जो बच्चों की जिज्ञासाएं शांत करें ,रुचियां को परिष्कृत करे और साथ में उन्हें संस्कारित भी करे। बाल साहित्य का उद्देश्य विश्व कल्याण, विश्व बंधुत्व और मानव को एक अच्छा इंसान बनना है । इसके अलावा सबको आपस में जोड़ना और एक आदर्श समाज की स्थापना करना उसका प्रमुख लक्ष्य है। अच्छा साहित्य बच्चों की दशा और दिशा दोनों ही बदलने में सक्षम होता है।
कोना कक्षा के संयोजक गणेश उनियाल ने कहा हमारा प्रयास है कि हम हर बच्चे हर स्कूल तक पहुंचें। आज के इस विमर्श का उद्देश्य है कि आप सभी के सहयोग से हमें उच्च कोटि का साहित्य बच्चों तक पहुंचाने में मार्गदर्शन मिले क्योंकि हमारी साहित्यिक जानकारी बहुत कम है फिर भी हम सामूहिक प्रयासों से आगे बढ़ते रहे।

अपने विस्तार कार्यक्रम के अंतर्गत हमने 2019 में मेरे गांव का स्कूल अभियान शुरू किया था जिसका बहुत अच्छा परिणाम मिला और समाज अपने गांव के स्कूल से जुड़ने के लिए आगे आया। वर्तमान में शहरी और ग्रामीण शिक्षा में बहुत अंतर है। ग्रामीण विद्यालयों में बहुत कुछ किया जाना बाकी है अतः अभी हाल ही में विद्यालयों की बेहतरी के लिए मेरे गांव का स्कूल मवाधार के नाम से एक नया अध्याय शुरु किया है जिसमें वहां के पूर्व छात्रों व समाज के सहयोग से विद्यालय में आवश्यक संशाधन जुटाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि सरकार के प्रयासों के साथ ही समाज भी स्कूलों की बेहतरी के लिए आगे आये।

एक कोना कक्षा का कार्यक्रम के निरंतर विस्तार के मूल में हमारे सहयोगी एवं विद्यालयों के शिक्षक हैं जिनके सहयोग से हम इसका संचालन कर पा रहे हैं। अभी हमारे पास 47 विद्यालय प्रतीक्षा सूची में हैं जिनकी डिटेल काउंटर पर उपलब्ध है। विद्यालयों का यह उत्साह हमारे लिए प्रेरणा दायक है।

धाद साहित्य एकांश की सचिव कल्पना बहुगुणा ने बताया कि एक कोना कक्षा मे किताबों के चयन की प्रक्रिया निरंतर बेहतर बनाने का प्रयास किया जाता है I हमरा प्रयास बच्चों तक दुनिया की सबसे बेहतरीन पुस्तकें पहुँचाना है I

कार्यक्रम का संचालन धाद साहित्य एकांश की संयोजक डॉ. विद्या सिंह ने किया I कार्यक्रम मे मोनिका खण्डूरी, सुनीता चौहान, सीमा कटारिया , रुचि सेमवाल, डॉली डबराल,मुकेश नौटियाल, कल्पना बहुगुणा, राजीव पंतरी, डॉ उषा रेणु, विष्णु तिवारी, नीलम प्रभा वर्मा, सुधा जुगराण, सत्यानंद बडूनी, उषा चौधरी, सलोनी चौहान, रितिक कुमार, वीरेंद्र डगवाल, डॉ राजेश पाल, इंदु भूषण सकलानी, विजय भट्ट, प्रज्ञा खण्डूरी, आशा डोभाल आदि मौजूद थे।

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